Saturday 1 October 2011

इन हसीन वादियों में......साथ तू थी मेरे ........

 


मैं सफ़र में था यादों में साथ तू थी मेरे
मैं सपनों में खोया था साथ तू थी मेरे

मैं चला जा रहा था टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
चली जा रह थी इन पर साथ तू भी मेरे||

यूँही साथ चलते हम आ गए थे जहां
इन हसीन वादियों में साथ तू थी मेरे ||
खुला आसमां था चमक ही चमक थी
इस आसमां के तले साथ तू थी मेरे ||

मुझ को नज़ारे मिल गए थे, मिल गयी थी बाहारें
इन बाहारों में सनम, हर पल साथ तू थी मेरे
हवायें चल रहीं थी तेरी जुल्फे उड़ी जा रहीं थी
इन फ़िज़ायों में गुनगुनाते हुए साथ तू थी मेरे ||

चाँद की चांदनी भी हम को मदहोश कर रही थी
इस चांदनी में इन मदहोशियों में साथ तू थी मेरे
तेरे बदन की खुश्बू मुझ को महका रही थी
इन हसीं लम्हों में मेरे सीने लगी साथ तू थी मेरे||

मुझ को तू जो मिली हर खुशी मिल गयी थी
ये बाहारें, ये नज़ारे भी खुश थे जो साथ तू थी मेरे
छावं में आँचल की तेरे मुझे मंजिल मिल गयी थी
बाहें भी खुश थी मेरी, क्यूंकि साथ तू थी मेरे ||

दिल में मोहब्बत के अज़ब से तूफ़ान उठ रहे थे
फूलों की महकी वादियों में जब साथ तू थी मेरे
तुम जो मिले मुझे हर खुशी मिल गयी थी
मेरे नसीबों की 'अशोक' बंद मुठी खुल गयी थी
क्यूंकि साथ तू थी मेरे, साथ तू थे मेरे , साथ तू थी मेरे ||

.........अशोक अरोरा......

हम किस युग की बात करे...........

 


दिए नारी को दर्द इतने ...हिसाब नहीं
या खुदाया तेरा जवाब नहीं...
बोलो तो......
हम किस युग की बात करे...........
सत युग में भी नारी बिकी थी
तब खुद राजा ने बेचा था
त्रेता में राम हुए ...
तब भी सीता का अपहरण हुआ था
द्वापर के कृष्ण युग भी
द्रोपदी का चीरहरण हुआ..था .....
और कलयुग की बात करे तो
आज भी नारी बिकती है
अब भी अपहरण होता है
और ना जाने कितनी
बालाओं का रोज चीरहरण होता है
उस युग तो बस एक रावण ,
एक कंस था...
आज रावण ही रावण चहुँ ओर बसते है
और बहुत से दुशासन घमंड की
हूँकार भरते है
और जयदरथों की
आज कोइ कमी नहीं
हे राम,..हे कृष्ण ..
सुनलो सबकी पुकार
तुम्हें फिर आना होगा और
नारी की लाज को बचाना होगा
तुम ना आये तो फिर
हर नारी खुद ही
दुर्गा बन जाएगी
फिर कौन तुम्हे याद करेगा
कौन तुम्हे भगवान कहेगा ?
बिन तेरे इस जीवन में .....
ना उल्लास ,ना उत्सव और
ना आनंद रहेगा ...
हम तुम्हे भगवान कहते हैं ...
एक अरज है तुमसे मेरी ...
जला डालो कामवासना सबकी ....
फिर एक बार राम युग का ...
शंक नाद बजा डालो ...........|
जहां ना नारी बिके,
ना हरण, ना चीरहरण हो उसका
और दहेज़ की खातिर ना नारी का,
ना नर का शोषण हो .....
मैं जानता हूँ, तुम भी प्रभु
अब दुखी हो और मेरी अभिलाषा को पूर्ण करने की खातिर इस नए युग के
पथ पर अग्रसर..हो.........|
........अशोक अरोरा......

Monday 19 September 2011

आ अब साथ आ तू मेरे

मैं ज़िंदगी के दोराहे पर
खड़ा ये सोचा रहा था
क्यूँ मुझे से नाराज़ है
ये मेरी ज़िंदगी
ना जाने आज अचानक
ये क्या हुआ
मुझ से आ लिपटी
वो मेरी ज़िंदगी
ले अपनी आगोश में
मुझ से मेरे कानों में
ये बोली मेरी ज़िंदगी
मैं तुझसे नाराज नहीं हूँ
ऐ मेरी ज़िंदगी,
तुझ से दूर जा के
मैं भी बहुत रोयी हूँ
ऐ मेरी ज़िंदगी
केवल तुने नहीं
मैंने भी तुझ से
दूर रह कर
बहुत कुछ खोया है
ऐ मेरी ज़िंदगी
अब ना जाऊँगी कभी
मैं तुझ को तन्हा छोड़ क़र
ऐ मेरी ज़िंदगी...
आ अब साथ आ तू मेरे
ऐ मेरी ज़िंदगी
अब मिल क़र
बसर करें हम तुम
अब ये अपनी ज़िंदगी...ये अपनी ज़िंदगी
ये अपनी ज़िंदगी...ये तेरी मेरी ज़िंदगी ||
.......अशोक अरोरा......

Saturday 3 September 2011

तेरी याद बहुत सताती है

तेरी याद बहुत सताती है


जब सुबह सूरज की
पहली किरणों ने
मेरे माथे को चूमा तो .....
मुझे याद आया
वो सुबह-सुबह
तेरे होंठों का मेरे माथे को
वो चूम जाना
मेरे तन बदन में
स्फूर्ति का भर जाना ||
मुझे याद आया
वो तेरा मंदिर में जाना
वो घंटी बजाना और
मीठे सुरों में
वो आरती गाना
हम सब के लिए
उस रब को मना ||
मुझे याद आया
वो तेरा रसोई में जाना
और हम सब के लिए
पकवान बना
हम सब को अपने
हाथों से
वो तेरा खिलाना ||
मुझे याद आया
वो मेरा स्कूल से
घर वापस आना
वो मेरी रहा पर
तेरा टिकटिकी लगाना
वो अपने हाथों से
मेरे कपड़े बदलना
मेरी स्कूल डायरी को पड़ना
वो तेरा फिर मुझ को
होमवर्क कराना ||
मुझे याद आया
वो मेरा शरारतों का करना
मेरा तुझ को सताना
और तेरा कभी कभी
गुस्से में मुझे झापड़ लगाना
वो मेरा रूठ जाना
और तेरा मुझे मनाना
मुझे दुखी देख
वो तेरा आंसू बहाना ॥
मुझे याद आया
वो रातों में मुझे
नींद का ना आना
और मेरा घबराना
तब अपने हाथों से
वो तेरा मुझे थपथपाना,
वो लोरी सुनाना तब
मेरा तेरे सीने से
लिपट कर सो जाना
आज भी माँ मुझे
नींद नहीं आती है
और तेरी याद बहुत
सताती है ||
और 'अशोक' मैं सोचा करता हूँ
एक माँ ही क्यूँ ऐसी होती है.....||
..........अशोक अरोरा.........

Wednesday 31 August 2011

काश के मैं.........


काश के मैं चूड़ी होता
अपनी नाज़ुक कलाई में
बड़े सलीके से
बड़े रीत से,
बड़े प्रीत से,
बड़े चाव से
और अरमानों के साथ
तू चढ़ाती मुझ को |
फुर्सत के लम्हों में
जब किसी सोच में डूबी
तू बेताबी से घुमाती मुझ को
तब तेरे हाथों की खुशबु
महका जाती ,
बौरा जाती मुझ को |
और खुश हो कर जब
तू मुझ को चूमा करती
तब तेरे सुर्ख अधरों की गर्मी
उर्जित कर जाती मुझ को |
रातों को सोते में जब
तू अपने हाथों के
तकिये पर रख कर
सर जब अपना सोती
तब मैं तेरे गालों,
तेरी जुल्फों से
खेला करता और
तेरे कानों से सट कर
मैं घंटों तुझ से
बातें करता |
तेरे हर बदलते रंग पर
रंग मेरा भी बदला करता
सुबह शाम तुझ को
मैं अपनी आँखों से
निहारा करता |
टूट ना जाऊं कहीं मैं
तुझ को हरदम
डर ये सताया करता
इसीलिए कदम कदम पर
हर चोट से तू मुझ को
बचाया करती |
'अशोक' काश के
मैं चूड़ी होता
तेरे हाथों में सजकर
तेरे रूप में चार चाँद
लगाया करता
और तेरे मन-मंदिर को
अपनी खन खन से
खनखाया करता
काश के मैं चूड़ी होता ||



.......अशोक अरोरा .......

Monday 29 August 2011

गुरुवर

 


मैने जब जन्म लिया था
ए, बी, सी, डी
क, ख, ग, घ
मुझ को कुछ ना आता था |
पहली गुरु मुझे अम्मा मिली
माँ, पा जिसने सिखाया था |
अच्छे भले बुरे का ज्ञान
मैनें जिस से पाया था |
जब मैं बड़ा हुआ था
तब माँ, पा ने मुझे
पढ़ने भिजवाया था
तब मेरे गुरु ने मुझे को
भाषा ज्ञान कराया था |
मेरा भी मन करता था
मैं भी कुछ लिखा करूँ
बहुत विचार आते थे मन में
पर मैं लिखने से डरता था |
बड़ी पुरानी कथनी है कि
जिन खोजा तिन पाया
और खोज खोज कर
मैने भी एक गुरु पाया |
इस गुरु ने मेरे मन के
डर को पहले दूर भगाया
और मुझ को लिखने का
गुरु मंत्र सिखाया ... |
जो कुछ मैनें लिखा है
वो सब इस गुरु को समर्पित है. ..
सच कहा है .मेरे ग्रंथों ने ....

गुरु ब्रह्मा गुरुर विष्णु
गुरु देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात परा ब्रह्मा
तस्मै श्री गुरवे नमः |
और तभी तो 'अशोक' कहता है
जिन गुरुवर अच्छा पाया
उन्होंने ने सब कुछ पाया ||||...
....अशोक अरोरा....

Saturday 27 August 2011

आपकी याद ...........

by Ashok Arora on Saturday, August 27, 2011 at 3:47pm

रात भर आपकी चाहत सताती रही
दिल को एक उम्मीद बहलाती रही
मेरे दिल से निकलती हर सदा
आपको रात भर बुलाती रही
मेरे तस्सवुर में रात भर
आपकी तस्वीर आती रही
मैं सुनता रहा आप गाती रहीं
आपकी खुशबु फिज़ा को
महकाती रही
चाँद की चांदनी दिल मेरा
रात भर दुखाती रही
और आपकी याद रात भर
मुझे रुलाती रही ...रुलाती रही
दिल दुखाती रही ....दिल दुखाती रही...

.......अशोक अरोरा.......

Saturday 20 August 2011

क्यूँ ऐसा मुझको लगता है............

कौन किस का दोस्त यहाँ पर ,
ये कहना मुश्किल है |
हर चेहरे पर नकाब यहाँ पर ,
हाथ में खंजर तना हुआ है |
गौर से देखो यहाँ पे यारों,
सब मोहब्बत के मारे हैं |
इस महफ़िल में मैं तनहा हूँ,
क्यूँ 'अशोक' ऐसा मुझको लगता है |||| .....

.....अशोक अरोरा ......

Thursday 18 August 2011

कि क्यूँ सावन ...आखिर सावन होता है||

वो बादलों का घिरना
वो बादलों का घिरना
वो रिम झिम उनका बरसना
वो सुबह का आलम
वो मंद मंद बयार
वो बच्चों की मस्ती
वो कागज की कश्ती
और वो जाते हुए सावन का
यूं रह रह कर बरसना
ये आज समझ आया है 'अशोक'
कि क्यूँ सावन ...
आखिर सावन होता है||
...अशोक अरोरा ....

Sunday 14 August 2011

अपने इस देश को यारों ......

मेरे भारत ने
इस दुनिया को बहुत दिया है
राम दिए, कृष्ण दिए
गौतम बुद्ध, महावीर और नानक का
शांति और प्रेम का सन्देश दिया है
और गीता का मर्म दिया है.
कर्मण्ये वाधिकारस्तेम फलेषुकदाचना
कर्मफलेह्तुर भुरमाते
संगोस्त्वकर्मानी॥
का ज्ञान दिया है
सारी दुनिया को भारत ने
अध्यात्म का आधार दिया है..
मेरे भारत ने जो आया
उसको आत्मसात किया है ....
तभी तो यहाँ पर  ...
हिन्दू, मुस्लिम,सिख, ईसाई
आपपास में हैं भाई भाई......
अपने इस देश को यारों
हमने और महान बनाना है
और इस देश की बड़ती
आबादी पर हमको मिल कर
रोक लगाना है..
जय हिंद ...मेरा भारत महान .....तिरंगा इस की शान
.........अशोक अरोरा...............

Saturday 13 August 2011

वाह री नारी तू धन्य है............

नारी तेरे अस्तित्व
बिना किसी रिश्ते
का मोल नहीं |
माँ बाप, भाई बहन,
प्रेमी प्रेमिका, पति पत्नी,
तेरे बिन सब अधूरे हैं |
रक्षाबंधन के मौके पर
सब लोग खुशी मनाते हैं
और गाते हैं ......
बहना ने भाई की कलाई से
प्यार बांधा है,
प्यार के दो तार से,
संसार बाँधा है,
रेशम की डोरी से
संसार बाँधा है |
तब मेरा मन
नमन करता है,
उन बहनों को,
जो कोख से जन्म,
ले ना सकी,
और मर गयी,
एक भाई की खातिर .!!!!!
वाह री नारी तू धन्य है,
जो फिर भी लुटती है,
मरती है एक पुरुष
की खातिर ..........
.....अशोक अरोरा.....

Monday 8 August 2011

तू जब भी लौट सके

हम सोच में खड़े थे
कि कहाँ जायें अब
ना कोई रास्ता ,
ना मंजिल कोई ,
ना कोई साथ था मेरे
जो भी मिले थे दोस्त
वो बेवफा मिले
तलाशते रहे हम इंसान,
ता उम्र...
हमें खुदा मिला
या फिर शैतान
ही मिले ....
एक दोस्त चाहते थे हम
खुद के वास्ते ...
कुछ ने दिखाए सपने
और कुछ् आंसू दे गए
हम ने छू लिया था
जिसके दिलों को
उस दोस्त का
अब कोई पता नहीं ....
जिसकी अब कोई
खबर ना मिले ..
वो फैसला खुद करता
तो गिला ना था मुझे
ये दुनिया तो ऐ दोस्त
दोस्तों कि खुशी से जलें
वो दोस्त जो ‘अशोक’
दूसरों के कहने पर
चला करे ...वो ,
भूल कर भी किसी से
दोस्ती ना किया करे
ये दिल तेरा घर है...
ए-दोस्त
तू जब भी लौट सके
लौट आना फिर ...मेरी जिन्दगी में
मेरी धड़कन बन के ||
रचना : अशोक अरोरा

Wednesday 3 August 2011

हम हिदुस्तानी भी कमाल करते हैं.....

 

by Ashok Arora on Wednesday, August 3, 2011 at 1:16pm
हम हिदुस्तानी भी
कमाल करते हैं
हर रोज़ हम मुम्बई
हमलो की बात करते हैं
और कहते हैं कि जब तक
कार्यवाही नहीं करोगे
हम बात नहीं करेंगे तुमसे
ये हमारा फैसला हैं....
वो कुछ नहीं करते
हम से कुछ नहीं कहते
और एक दिन अचानक
ये बात उछलती है
कि अब बात होगी
उन में और हम में
और अचानक एक हसीना
आसमान से यहां उतरती है
और वो वहां की सब से
जवां मंत्री है
और हम हिन्दुस्तानी
पलक पावंडे बिछाते हैं
और उस हसीना के ही
गुण गाते हैं
हम सब  को बताते हैं
क्या हसीं चेहरा है
इस नाज़नीन का
चश्मा भी ख़ूबसूरत
इस की आंखों पे है लगता
इठलाती है ऐसे जैसे
गुंच्चा हो फूलों का
हर चीज़ इस की गज़ब है
जो खुदा ने तराशी
हाथों में पर्स हो या
होंठों पे लाली
ये देश....ये मीडिया
सब उसी में खो जाते हैं
वो आ कर चली भी
जाती हैं यारों
मुद्दे सब ही
वहीं के वहीँ रह जाते हैं
ये तो त्रसादी हे मेरे देश की
जो भी लूटता  है हम
उसी के गुण गाते हैं

उस की चकाचौंध में
खुद गुम हो जाते हैंऔर सारी दुनिया को बताते हैं.
कि..आतिथि देवो भव:
इस लिए 'अशोक' कहता है
कि मेरा भारत महान.......

Sunday 31 July 2011

मैं एक लाश हूँ .......

मैं एक  लाश  हूँ .......
 By अशोक  अरोरा ·  June 23, 2011
......????????

मैं एक लाश हूँ

पोस्ट.मोर्टेम   के  लिए

एक  कोने  मैं  पडी

अपनी मुक्ति  के  लिए

कराह  रही  थी

बाद में  आने  वाली  दूसरी  तीसरी

लाशों  का   पोस्ट.मोर्टेम 

हो  गया

मेरी  मुक्ति  मैं  कर्मचारी

रोड़ा  बना हुआ था ,

क्यूंकि

मेरे  अपनों  के  पास

नहीं था  रोकडा

उसे  रिश्वत  मैं

देने  को

मैं  सोचने  को

मजबूर हुई थी,

क्या 

संवेदनाये  दम  तोड़  चुकी

इस  आधुनिक  समाज  की

मैं भी 'अशोक' मजबूर हुआ था

वहां रुन्दन था

वहां करंदन  था

पर कोई कुछ ना

बोल रहा था ...

रचना : अशोक अरोरा

Wednesday 27 July 2011

तेरे नैनो का पानी........

by अशोक अरोरा on Tuesday, July 12, 2011 at 9:21am

एक कुआ था
एक नदी थी
समंदर भी
हमारा था
मगर पीने को
ना अब पानी
कुआ सुखा
नदी मैली
समंदय भी तो खारा है
और तेरे नैनो का
पानी भी अब मैला मैला
और ज्यादा ज्यादा खारा खारा है

आओ मिल बैढे
और रास्ता कोई निकाले
ताकि नयी पीड़ी को हम
अमृत पिला डाले और
फिर कोई सर फिरा
ना ये कह सके
की 'अशोक'
कुआ सुखा
नदी मैली
समंदर भी तो खारा है
और तेरे नैनो का
पानी भी अब मिला मैला मैला
और ज्यादा खारा खारा है
रचना : अशोक अरोरा .

Monday 25 July 2011

मैँ भी वो शमा हूँ यारोँ

by Ashok Arora on Sunday, July 24, 2011 at 8:30pm

ज़ब मैँ पैदा हुआ तो
मुझे क्या पता था
कि मैँ पहला बच्चा हूँ
हर ओर खुशी थी और
माँ बाबा भी खुश थे
फिर कुछ् अंतराल के बाद
घर मेँ एक नया जीवन आया
कुछ दिन तो मैँ भी नाचा गाया
फिर मैँ महसूस किया कि
अब प्यार मेरा है बँटा हुआ
और न जाने मैँ कब बडा हो गया
बात बात पर मैँ सुनता था
बेटा छोटे का ख्याल रखना
हम खेला करते थे आपस में
झगडते भी थे पर
एक दुजे पर मरते थे
फिर भी डांट मुझे ही पडती
हर चीज़ मेरी बँट जाती थी
तू बडा है छोटे से बाँटा कर
माँ बाप मेरे ये कहते थे
ना जाने हम कब बडे हुए
मैँने देना सीखा था और
उसने लेना सीखा था........
जब मुझे भाई जरुरत थी
उस ने नज़रेँ फेरी मुझ से
तब मुझे उस शमा की याद आई
खुद को जो जलाती है
पल पल .......
और् तिल तिल कर
जो मरती है
कतरा कतरा पिघलती है
अपना सब कुछ जला कर
भी रोशन घर को करती है
जब तक वो जलती है
परवाने भी खूब मचलते हैँ
और उस को मिलने की खातिर्
दौडे दौडे आते हैँ
मैँ भी ‘अशोक’ वो शमा हूँ यारोँ
जो खुद के रिश्तो की आग मेँ
जलता है
और जलने का अभिशाप
साथ लिये फिरता है
( अशोक अरोरा)

Sunday 24 July 2011

दोनोँ मुझ से दूर हूये है...........

by Ashok Arora on Saturday, July 16, 2011 at 3:53pm

एक दिन सुबह शहर मेँ

एक चौराहे पर ख़डा

मुझे एक मासुम मिला

लाल लाल गाल थे उस के

चेहरा भी था भरा भरा

मैँने पूछा प्यारे बच्चे

यहाँ पर कियूं खडे हुऎ हो

किन माँ बाप के दुलारे हो

कहाँ पर हैँ माँ बाप तुम्हारे

वो बोल

दोनोँ मुझ से दूर हूये हैँ

मिलने से भी मजबूर हूये हैँ

दोनोँ ने अपनी दुनिया बसा ली

माँ ने भी ममता बिसरा दी

बाप का प्यार माँ की ग़ोदी

उसका आँचल उसकी लौरी

यह सब मुझसे अब दूर हुए हैँ

और मैँ यहाँ पर खडा हुआ

अब बाटँ जौह रहा

एक संरक्षक की


मेरा मन तब रो उठा

और बोल कि हे प्रभु

कैसे माँ बाप हैँ ये

इस युग के अपनी

दुनिया अलग बसा ली

और इस मासूम की

दुनिया मेँ एक अनचाही

आग लगा दी..... रचियता: अशोक-अरोरा