Wednesday 31 August 2011

काश के मैं.........


काश के मैं चूड़ी होता
अपनी नाज़ुक कलाई में
बड़े सलीके से
बड़े रीत से,
बड़े प्रीत से,
बड़े चाव से
और अरमानों के साथ
तू चढ़ाती मुझ को |
फुर्सत के लम्हों में
जब किसी सोच में डूबी
तू बेताबी से घुमाती मुझ को
तब तेरे हाथों की खुशबु
महका जाती ,
बौरा जाती मुझ को |
और खुश हो कर जब
तू मुझ को चूमा करती
तब तेरे सुर्ख अधरों की गर्मी
उर्जित कर जाती मुझ को |
रातों को सोते में जब
तू अपने हाथों के
तकिये पर रख कर
सर जब अपना सोती
तब मैं तेरे गालों,
तेरी जुल्फों से
खेला करता और
तेरे कानों से सट कर
मैं घंटों तुझ से
बातें करता |
तेरे हर बदलते रंग पर
रंग मेरा भी बदला करता
सुबह शाम तुझ को
मैं अपनी आँखों से
निहारा करता |
टूट ना जाऊं कहीं मैं
तुझ को हरदम
डर ये सताया करता
इसीलिए कदम कदम पर
हर चोट से तू मुझ को
बचाया करती |
'अशोक' काश के
मैं चूड़ी होता
तेरे हाथों में सजकर
तेरे रूप में चार चाँद
लगाया करता
और तेरे मन-मंदिर को
अपनी खन खन से
खनखाया करता
काश के मैं चूड़ी होता ||



.......अशोक अरोरा .......

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