Monday 25 July 2011

मैँ भी वो शमा हूँ यारोँ

by Ashok Arora on Sunday, July 24, 2011 at 8:30pm

ज़ब मैँ पैदा हुआ तो
मुझे क्या पता था
कि मैँ पहला बच्चा हूँ
हर ओर खुशी थी और
माँ बाबा भी खुश थे
फिर कुछ् अंतराल के बाद
घर मेँ एक नया जीवन आया
कुछ दिन तो मैँ भी नाचा गाया
फिर मैँ महसूस किया कि
अब प्यार मेरा है बँटा हुआ
और न जाने मैँ कब बडा हो गया
बात बात पर मैँ सुनता था
बेटा छोटे का ख्याल रखना
हम खेला करते थे आपस में
झगडते भी थे पर
एक दुजे पर मरते थे
फिर भी डांट मुझे ही पडती
हर चीज़ मेरी बँट जाती थी
तू बडा है छोटे से बाँटा कर
माँ बाप मेरे ये कहते थे
ना जाने हम कब बडे हुए
मैँने देना सीखा था और
उसने लेना सीखा था........
जब मुझे भाई जरुरत थी
उस ने नज़रेँ फेरी मुझ से
तब मुझे उस शमा की याद आई
खुद को जो जलाती है
पल पल .......
और् तिल तिल कर
जो मरती है
कतरा कतरा पिघलती है
अपना सब कुछ जला कर
भी रोशन घर को करती है
जब तक वो जलती है
परवाने भी खूब मचलते हैँ
और उस को मिलने की खातिर्
दौडे दौडे आते हैँ
मैँ भी ‘अशोक’ वो शमा हूँ यारोँ
जो खुद के रिश्तो की आग मेँ
जलता है
और जलने का अभिशाप
साथ लिये फिरता है
( अशोक अरोरा)

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