Sunday 31 July 2011

मैं एक लाश हूँ .......

मैं एक  लाश  हूँ .......
 By अशोक  अरोरा ·  June 23, 2011
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मैं एक लाश हूँ

पोस्ट.मोर्टेम   के  लिए

एक  कोने  मैं  पडी

अपनी मुक्ति  के  लिए

कराह  रही  थी

बाद में  आने  वाली  दूसरी  तीसरी

लाशों  का   पोस्ट.मोर्टेम 

हो  गया

मेरी  मुक्ति  मैं  कर्मचारी

रोड़ा  बना हुआ था ,

क्यूंकि

मेरे  अपनों  के  पास

नहीं था  रोकडा

उसे  रिश्वत  मैं

देने  को

मैं  सोचने  को

मजबूर हुई थी,

क्या 

संवेदनाये  दम  तोड़  चुकी

इस  आधुनिक  समाज  की

मैं भी 'अशोक' मजबूर हुआ था

वहां रुन्दन था

वहां करंदन  था

पर कोई कुछ ना

बोल रहा था ...

रचना : अशोक अरोरा

Wednesday 27 July 2011

तेरे नैनो का पानी........

by अशोक अरोरा on Tuesday, July 12, 2011 at 9:21am

एक कुआ था
एक नदी थी
समंदर भी
हमारा था
मगर पीने को
ना अब पानी
कुआ सुखा
नदी मैली
समंदय भी तो खारा है
और तेरे नैनो का
पानी भी अब मैला मैला
और ज्यादा ज्यादा खारा खारा है

आओ मिल बैढे
और रास्ता कोई निकाले
ताकि नयी पीड़ी को हम
अमृत पिला डाले और
फिर कोई सर फिरा
ना ये कह सके
की 'अशोक'
कुआ सुखा
नदी मैली
समंदर भी तो खारा है
और तेरे नैनो का
पानी भी अब मिला मैला मैला
और ज्यादा खारा खारा है
रचना : अशोक अरोरा .

Monday 25 July 2011

मैँ भी वो शमा हूँ यारोँ

by Ashok Arora on Sunday, July 24, 2011 at 8:30pm

ज़ब मैँ पैदा हुआ तो
मुझे क्या पता था
कि मैँ पहला बच्चा हूँ
हर ओर खुशी थी और
माँ बाबा भी खुश थे
फिर कुछ् अंतराल के बाद
घर मेँ एक नया जीवन आया
कुछ दिन तो मैँ भी नाचा गाया
फिर मैँ महसूस किया कि
अब प्यार मेरा है बँटा हुआ
और न जाने मैँ कब बडा हो गया
बात बात पर मैँ सुनता था
बेटा छोटे का ख्याल रखना
हम खेला करते थे आपस में
झगडते भी थे पर
एक दुजे पर मरते थे
फिर भी डांट मुझे ही पडती
हर चीज़ मेरी बँट जाती थी
तू बडा है छोटे से बाँटा कर
माँ बाप मेरे ये कहते थे
ना जाने हम कब बडे हुए
मैँने देना सीखा था और
उसने लेना सीखा था........
जब मुझे भाई जरुरत थी
उस ने नज़रेँ फेरी मुझ से
तब मुझे उस शमा की याद आई
खुद को जो जलाती है
पल पल .......
और् तिल तिल कर
जो मरती है
कतरा कतरा पिघलती है
अपना सब कुछ जला कर
भी रोशन घर को करती है
जब तक वो जलती है
परवाने भी खूब मचलते हैँ
और उस को मिलने की खातिर्
दौडे दौडे आते हैँ
मैँ भी ‘अशोक’ वो शमा हूँ यारोँ
जो खुद के रिश्तो की आग मेँ
जलता है
और जलने का अभिशाप
साथ लिये फिरता है
( अशोक अरोरा)

Sunday 24 July 2011

दोनोँ मुझ से दूर हूये है...........

by Ashok Arora on Saturday, July 16, 2011 at 3:53pm

एक दिन सुबह शहर मेँ

एक चौराहे पर ख़डा

मुझे एक मासुम मिला

लाल लाल गाल थे उस के

चेहरा भी था भरा भरा

मैँने पूछा प्यारे बच्चे

यहाँ पर कियूं खडे हुऎ हो

किन माँ बाप के दुलारे हो

कहाँ पर हैँ माँ बाप तुम्हारे

वो बोल

दोनोँ मुझ से दूर हूये हैँ

मिलने से भी मजबूर हूये हैँ

दोनोँ ने अपनी दुनिया बसा ली

माँ ने भी ममता बिसरा दी

बाप का प्यार माँ की ग़ोदी

उसका आँचल उसकी लौरी

यह सब मुझसे अब दूर हुए हैँ

और मैँ यहाँ पर खडा हुआ

अब बाटँ जौह रहा

एक संरक्षक की


मेरा मन तब रो उठा

और बोल कि हे प्रभु

कैसे माँ बाप हैँ ये

इस युग के अपनी

दुनिया अलग बसा ली

और इस मासूम की

दुनिया मेँ एक अनचाही

आग लगा दी..... रचियता: अशोक-अरोरा